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विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित "आर्त भाव" में "अग्निदेव" की आरती से उद्घ्रित कुछ पंक्तियाँ । 

 

 

 

 

 

ॐ अग्नेय नम: ।(सामान्य मंत्र)

ॐ जय अग्निदेवा ,
स्वमी जय अग्निदेवा ।
यज्ञ प्रधान अंग हो स्वामी ,
जग प्रकाश देवा ।।

शुचि पावक पवनाम तुम्हारे ,
तीन पुत्र धारे ।
अधिपति हो आग्नेय कोण के ,
तीर्थ पुण्य देवा ।।

दास विपुल है शरणी तेरे ,
पूर्ण यज्ञ कर दो ,
भक्ति भाव जन मन में जागे,
पाप हरो देवा ।।

 रं वह्रिचैतन्याय नम:|(बीज मंत्र)

 

 

 

विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित "आर्त भाव" में "शिव रुपों के बीज मंत्र" से उद्घ्रित | 

 

 

 

 

 

 

हरा हरा महादेवा, पार्वती वल्लभ सदाशिवा
 

माहादेव का बीज मंत्र
ॐ बं महादेवाय नम: ।


सिद्ध मंत्र
ॐ नम: शिवाय ।


अन्य प्रचलित सिद्ध मंत्र
बम बम महदेव ।
अलख निरंजन ।

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हनुमान जी का बीज मंत्र
ॐ हं हनुमन्ताये नम: ।


अन्य मंत्र
ॐ श्री हनुमंतये नम: ।


प्रचलित भक्तनुवाक्य
जय बजरंग बली ।
ॐ पवन् पुत्रायै नम: ।

 

 शारदा तिलक मंत्र
ॐ नमो भगवते आन्जनेय महाबलाय स्वाहा ।

 

 

 

विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित "आर्त भाव" में "अथ नवग्रह ध्यानम्-मंगल" से उद्घ्रित । 

 

 

 

 

 

अथ नवग्रह ध्यानम् - मंगल

रक्तमाल्याम्बरधर: शक्तिशूलगदाधर:।चतुर्भुज: रक्तरोमा वरद: स्याद् धरासुत: ।।

मंगल देव का बीज मंत्र, वैदिक मंत्र, पौरणिक मंत्र, सामान्य मंत्र  तथा महादशा, जपसंख्या, उपासना की विधि दी गयी है। 

 

 

विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित " आर्त भाव" में "चित्र्गुप्त महाराज" की आरती से उद्घ्रित कुछ पंक्तियाँ । 

 

 

 

 

 

 

 

 

ॐ श्री चित्रगुप्ताय नम: ।

 

 ॐ जय चित्रगुप्त देवा ,
स्वामी जय चित्रगुप्त देव ।
जय जय विधि मानस् पुत्र ,
मंगल सब सेवा ।।

वर मुद्रा प्रभु आरुढ आसन ,
कमल पुष्प साजे ।
क्रीट मुकुट धरि कानन कुण्डल , 
कायस्थ कुल सेवा ।।

दास विपुल की विनती स्वमी ,
जगत करो कल्याण ।
तेरो चित्र मन: पता वासे ,
ज्ञान ध्यान सेवा ।।

 

 

 

 

विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित " आर्त भाव" में  आरती से उद्घ्रित कुछ पंक्तियाँ ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ॐ छिन्नमस्तायै नम: ।

 

ॐ जय माता छिन्नमस्ता ,
मैया जय माता छिन्नमस्ता ।
जगत अधिपति कबन्ध ,
शक्ति छिन्नमस्ता ।।

जब शक्ति की मार अधिक हो , 
आगम कम होता ।
तब प्रकटे छिन्नमस्ता माता ,
भक्ति शक्ति हस्ता ।।

दास विपुल तेरे द्वारे मैय्या , 
भिक्षा भक्ति मांग ।
जो जन तेरी आरती गावे , 
दो सब छिन्नमस्ता।।

 

 

विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित "आर्त भाव" में "त्रिमुखि दत्त भगवाना" की आरती से उद्घ्रित कुछ पंक्तियाँ ।

 

 

 

 

 

 

 

 

ॐ नम: श्री दत्तात्रेयाय| 

 

हे त्रिमुखि दत्त भगवाना ,
सहज बुद्धि दो भाग्य विधाना ।
तुम परमेश्वर सद् गुरु जग के ,
ज्ञान ध्यान विज्ञान निधाना ।।

ब्रह्मा विष्णु शिव के रूपा ,
हो त्रिलोकी जगत सुरभूपा ।
तीनों गुण तुमसे हैं चलते ,
पर हो गुणातीत भगवाना ।।

दास विपुल कर जोर पुकारे ,
सत्य बुद्धि दो ये ही गुहारे ।
द्वार तिहारे ठाढे प्रभुवर,
अब तो दरशन दो भगवाना ।।

 

 

विपुल  लखनवी द्वारा  लिखित "आर्त भाव" में आरती से उद्घ्रित कुछ पंक्तियाँ ।

 

 

 

 

 

 

 

ॐ गं गणपतयै नम:।(बीज मंत्र)

 

जय गणेश गिरिजा के नंदन,
नमन करे जग शत शत वंदन।

ओंकारेश्वर तुम कहलाते ,
भाग्य जनों का तुम्ही बनाते।
दास् विपुल हुम हैं अज्ञानी ,
दया करो करते आराधन ।।

ॐ नम: श्री गणेशाय।(सामान्य मंत्र) 

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