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VIPUL LUCKNAVI "BULLET"उर्फ़ VIPKAVI
A retd. scientist and active environmentalist with sense of arts & literature
A recognized scientist , an eminent poet, an active environmentalist and much more... A unique approach towards science, culture and evolution of society
vipkavi@gmail.com ; +91 9969680093(M) ; facebook.com/vipkavi
शहर
जगह कम है मगर, नेकों गम हैं मगर ।
हम बेदम हुए, लेकिन दम है मगर ।।
सूनी सूनी डगर, पत्थरों का शहर ।
हम अकेले रहे, भीड ज्यादा मगर ।।
सुबह ऐसे उडे, घोंसलों से चिडे ।
दाना चुगते रहे, यूँ ही पलते रहे।।
कुछ झगडते हुए, रात को घर चले।
प्यास तक न बुझी, पानी कम न मगर।।
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "कविता टाँनिक" कि कुछ पंक्तियाँ।
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परिवर्तन
परिवर्तन है परिवर्तन जग में है मौलिक परिवर्तन।
स्त्री के लज्जा केश नहीं पुरुषों का नहीं केश कर्तन।।
पहले कन्या अकुलाती थी शादी सुनकर छिप जाती थी ।
अब माएँ चुप छुप जाती हैं बेटे के सिर पे लगा चंदन ।
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "अंत: भाव" की "परिवर्तन" से कुछ पंक्तियाँ
राजनीति
राजनीति बन गया है सिनेमा का स्टंट आज।
इसमें भी नाचने वाले होने चहिये।।
और
टेकते अंगूठा हाथ, सोने की कलम साथ।
चुनकर जाते हैं देश चलाने को।।.
शपथ भी जिनको लेना आता नहीं मेरे यारों।
शपथ भी लेने को डुप्लीकेट चाहिये।।
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "कविता टाँनिक" से कुछ पंक्तियाँ
गर्भपात
मेरे भी सपने थे निराले ,
मैं गौरव बन सकती थी ।
थी तुझको बेटे की चाहत ,
मुझ पर क्यों कहर ढाया ।।
नहीं शिकायत मैं करती हूं ,
तू मेरा जीवनधार बना ।
घुटकर मैं भी कुछ पल जी ली,
मौत ने मुझको गले लगाया।।
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "अंत: भाव" की "गर्भपात" से कुछ पंक्तियाँ|
होली
मैं कैसे खेलूँ होली ,
मैं काहे खेलूं होली ।
जिसको मेरी था होना ,
वह किसी और की होली ।।
विपुल लखनवी द्वारा लिखित ""कविता टाँनिक" की "मै कैसे खेलूँ होली" से कुछ पंक्तियाँ -- सोनी इंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित ।
ऎ शहरॆ लखनऊ
ऎ शहरॆ लखनऊ तुझॆ लाखों करुँ सलाम|
तू बॆमिसाल है जहॉ में, है अवध की शान ||
तॆरॆ इमामबाडॆ नवाबों की दास्तान |
हजरतमहल की वीरता, रूमीदर इक शान ||
यही जगह थी जहाँ फिरंगी भी कैद थॆ |
है नाम उसका रेजीडेंसी है वतन की शान ||
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "अंत: भाव" की "ऎ शहरॆ लखनऊ "से
कुछ पंक्तियाँ -- लखनऊ महोत्सव, १९९८ मॆ "रत्न" से विभूषित, प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना गौरी शर्मा द्वारा विशेष भाव गीत प्रस्तुति ।
मौकापरस्ती
क्या हुआ हिन्दोस्ताँ को लखनवी,क्या कहूँ अब बात मैं कुछ भी नई|
कुछ कहूँ तो इस कलम को छीनकर,सच कहूँ तो सर को काटा जाएगा||
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "अंत: भाव" से कुछ पंक्तियाँ
कैसे लोग
पीठ पीछे जो मुझे गाली दें|
सामने आते ही आदाब किया करते हैं||
विपुल लखनवी द्वारा लिखित "अंत: भाव" से कुछ पंक्तियाँ
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